abortion: भले ही देश में महिलाओं के सशक्तिकरण पर खूब चर्चा चल रही हो। लेकिन हकीकत तो कुछ और ही है। CNN-News 18 ने अभी हाल ही में इसकी जांच की तथा इसमें चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है। 2019 से 2021 के सरकारी आंकड़ों के विश्लेषण से यह पता चलता है कि आज भी देश में 4 में से 1 abortion महिलाएं या फिर लड़कियां घर पर खुद से ही कर लेती हैं।
सिर्फ यही नहीं इस स्टडी में शामिल करीब आधी महिलाओं का यह कहना है कि गर्भपात का मुख्य कारण अनियोजित गर्भावस्था यानी कि Unplanned Pregnancy थी। सरकारी डाटा से यह जानकारी मिलती है कि महिलाओं के खुद घर पर ही गर्भपात करने के प्रतिशत में भी 2015 से 2016 में किए गए विश्लेषण की तुलना में एक प्रतिशत का इजाफा देखने को मिला है।
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राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण -5 की रिपोर्ट यह बताती है कि लगभग एक चौथाई यानी कि 27 फ़ीसदी abortion घर में ही महिला ने खुद से ही कर लेती हैं। घर में गर्भपात करने का ये अभ्यास शहरी क्षेत्रों (22.1%) की तुलना में ग्रामीण क्षेत्रों में (28.7%) अधिक पाया जाता है।
बता दें कि गर्भपात करने के लिए सबसे पहली पसंद डॉक्टर (55 प्रतिशत मामलों में) होती हैं। उसके बाद से महिलाएं खुद से ही (27%) गर्भपात घर में ही कर लेती हैं। 48 प्रतिशत महिलाओं ने इसके पीछे का अहम कारण अनियोजित गर्भावस्था को बताया। जिसके पास से आगे उनकी सेहत उन्हें फिर से गर्भधारण करने की इजाजत नहीं देती है। सिर्फ यही नहीं 10 प्रतिशत महिलाओं का यह कहना था कि गर्भपात करने के कारण उनके फिर से गर्भधारण करने के दौरान ही उनके पहले बच्चे की उम्र का बहुत कम होना था।
भारत की सबसे अधिक आबादी वाले राज्य यूपी में खुद से ही किए हुए गर्भपात की संख्या (34 प्रतिशत) सबसे ज्यादा थी। इसके बाद से डॉक्टर, नर्स, एएनएम जैसे स्वास्थ्य कर्मियों से लगभग 30 प्रतिशत लोगों ने गर्भपात कराया। गर्भपात के 2 बड़े कारण पहली अनियोजित गर्भावस्था (50 प्रतिशत) तथा गर्भावस्था के दौरान दिक्कतें (14 प्रतिशत) थी। अधिकतर गर्भपात (39 प्रतिशत) घर में ही किए गए। इसके बाद से ही निजी क्षेत्रों में लगभग 38 प्रतिशत तथा निजी अस्पतालों में हुए।
इसी प्रकार तमिलनाडु में गर्भपात का कारण स्वास्थ्य का साथ नहीं देना (31 प्रतिशत) तथा अनियोजित गर्भावस्था (30 प्रतिशत) थी। एक बड़ी संख्या में 65 फ़ीसदी ने गर्भपात कराने के लिए निजी अस्पताल को ही चुना। वहीं पर सार्वजनिक अस्पतालों में जाने वालों की संख्या भी 26 फ़ीसदी थी। यहा पर 80 फ़ीसदी गर्भपात डॉक्टरों ने किया।
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दरअसल असुरक्षित गर्भपात मातृ मृत्यु दर के पीछे एक अहम कारण रही है। चूंकि इसे रोका जा सकता है। वर्ष 1971 से भारत में मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेगनेंसी को वैध कर दिया गया है। लेकिन स्वास्थ्य सेवाओं तक लोगों की पहुंच खासकर दूरदराज या फिर ग्रामीण इलाकों में अभी भी एक चुनौती ही है।जिसके कारण महिलाएं अपना जान जोखिम में डालती हैं।
एमएमआर यानी कि मातृ मृत्यु अनुपात में असुरक्षित गर्भपात की हिस्सेदारी 8 प्रतिशत है। जो लोग सुरक्षित गर्भपात को ही नहीं अपनाते हैं। ऐसी महिलाओं के भविष्य के प्रजनन स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है। जबकि देश में सुरक्षित गर्भपात को लेकर कई सारी नीतियां में बनाई गई हैं। यही नहीं गर्भपात कानूनी तथा स्वास्थ्य सुविधाओं में उपलब्ध भी होता है। इसके बारे में जागरूकता की कमी है, सबसे आम कारणों में से एक है। जिसके कारण से महिलाएं अपनी जान जोखिम में डालती हैं।