काश पेट की भूख का भी कोई लॉकडाउन होता

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कोविड-19 को हमारे देश में 1 साल हो गया है और अभी भी कोरोना का तांडव थमा नहीं है। देश में कई प्रकार की अव्यवस्था हो गयी हैं और इन अव्यवस्थाओं से उबर भी नहीं पाए थे कि 2021 में कोरोना की दूसरी लहरा गई जो पहली लहर से भी अधिक घातक है। 2020 में कोरोना से बचने के लिए सरकार ने अनियोजित ,आकस्मिक लॉकडाउन लगा दिया जिसकी पहले से कोई व्यवस्था नहीं की गई थी देश के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने भारत की जनता को आदेश दिया कि जो जहां पर हम वही रहे लेकिन माननीय प्रधानमंत्री को सोचना चाहिए था कि जो लोग दिन भर काम करके दो टाइम की रोटी की व्यवस्था दिहाडी मजदूरी से करते हैं उनके लिए क्या योजना होने चाहिए।

पहले कुछ दिनों का लॉकडाउन किया तो प्रवासी मजदूरों में सोचा कि जो हमारी बचत है उससे कुछ दिनों की लॉकडाउन में गुजर बसर हो जाएगा और फिर इसके बाद लॉकडाउन खुल जाएगा लेकिन लॉकडाउन तो दिनों दिन बढ़ता चला गया और मजदूरों के पास जो कुछ था सब समाप्त हो गया था इसके चलते मजदूरों ने कुछ समय भूखे रहकर बिताया लेकिन पापी पेट ने उन्हें कोरोनावायरस के समय बाहर निकलने को मजबूर कर दिया।

लॉकडाउन के कारण गांव की ओर जाते लोग

भूख अंदर बैठे नहीं रहने दे रही थी और पुलिस बाहर नहीं निकलने दे रही थी ऊपर से कोरोना का संकट। प्रवासी मजदूरों ने अपने अपने गांव लौटने का निश्चय किया और अपने बीवी बच्चों को साथ लेकर निकल पड़े यातायात की सुविधा ना होने के कारण बच्चे, बुजुर्ग ,महिलाएं ,पुरुष सभी को कई सौ व किलोमीटर यात्रा पैदल ही तपती गर्मी में करनी पड़ी।

भूख के कारण खाना को झपटते लोग

इस यात्रा में कई मजदूरों के अलग-अलग कारणों से मौत हो गई मजदूरों को भूख ने तो तोड़ ही दिया था रास्ते में मजदूरों पर पुलिस ने भीे अत्याचार किये। बहुत ही मानवता को लज्जित करने वाली बात है कि जिन मजदूरों का काम छूटा, भूख ने तड़पाया , मीलों पैदल चले और परेशान मजदूरों को पुलिस ने पीटा भी।

लॉकडाउन लगा रहा बाद में कई ऐसे दया वीर ,दानवीर आए जिन्होंने मजदूरों और निस्सहायो की सहायता की जो काम सिस्टम को करना चाहिए था वह सोनू सूद जैसे लोगों ने किया।

कई परेशानियों को झेलते हुए मजदूर अपने अपने घर पहुंच गए और कुछ दिनों गांव में रहे और फिर शहर की तरफ लौटने लगे क्योंकि गांव में भी तो कमाई का कोई जरिया नहीं था और यदि गांव में काम मिलता होता तो मजदूर शहरों में क्यों जाते इसके बाद मजदूर फिर शहर चल दिए। कमबख्त भूख ने मजदूरों को ईतना सताया कि यह समय भारत के इतिहास में वर्णित किया जाएगा।

कोरोना पर विजय प्राप्त करें या ना करें लेकिन भूख ने सभी को हरा दिया। अब कोविड-19 की दूसरी लहर आ रही है और हमारी सरकार खूब रेलियां कर करके कोरोना को बढ़ाने के लिए आग में घी डालने जैसा काम कर रही है। कम से कम कोरोना की पहली लहर से सबक लेकर सरकार को दूसरी लहर की व्यवस्था करनी चाहिए ताकि कोई ढाबा वाले ,किसी दुकान वाले को ,किसी बर्तन वाले को , दिहाड़ी मजदूर को भूखा न रहना पड़े।

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