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यूनेस्को (UNESCO) ने हाल ही में हड़प्पा युगीन नगर धोलावीरा को वैश्विक धरोहर की सूची में शामिल किया

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हड़प्पा युगीन नगर धोलावीरा को यूनेस्को (UNESCO) ने वैश्विक धरोहर की सूची में शामिल कर लिया है। यह वैश्विक धरोहर की यूनेस्को सूची में जगह बनाने वाला गुजरात का चौथा जबकि भारत का 40 वां स्थल है। यूनेस्को विश्व धरोहर समिति (WHC) के 44 वें सत्र के बाद धोलावीरा को वर्ल्ड हेरिटेज में शामिल किया गया है इसकी खोज 1968 में जगत पति जोशी ने की थी। इस ऐतिहासिक स्थल पर मौजूद अवशेष इसके पतन और उत्थान की गाथा बता रहे हैं।

यूनेस्को सिंधु घाटी सभ्यता का पांचवा सबसे बड़ा नगर:-

सिंधु घाटी सभ्यता के चार बड़े शहरों मोहनजोदड़ो, गंगवेरिवाला, हड़प्पा और राखीगढ़ी के बाद धोलावीरा भुज से करीब 250 किलोमीटर की दूरी पर है, जो 47 हेक्टेयर के चतुर्भुजी क्षेत्रफल पर फैला है, पांचवां सबसे बड़ा नगर है। भौगोलिक रूप से कच्छ के रण पर विस्तारित कच्छ मरूभूमि वन्य अभ्यारण के भीतर खादिरबेट द्वीप पर स्थित है। धोलावीरा को विश्व धरोहर बनाए जाने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी खुशी जाहिर की है।भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण में इस शहर की योजना और वास्तुकला की काफी तारीफ की गई है।

यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज कमीटी ने कहा कि दक्षिण एशिया में तीसरी से दूसरी मध्य सहस्त्राब्दी ईसा पूर्व के बीच यह सबसे उल्लेखनीय और संरक्षित की गई शहरी बस्ती है, “1968 में खोजी गई यह जगह अपनी खास विशेषताओं के कारण अलग है जैसे- जल प्रबंधन, कई स्तरों वाली रक्षा व्यवस्था, निर्माण में पत्थरों का अत्यधिक इस्तेमाल और दफन करने की खास संरचनाएं” इसके अलावा शहर के साथ जुड़ी कला भी खास है।

धोलावीरा की खुदाई के दौरान मिले साक्ष्य और अद्भुत कारीगरी:-

यहां पर खुदाई के दौरान तांबा, पत्थर , टेराकोटा के आभूषण और सोने की कलाकृतियां भी मिली थी। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के अनुसार सभ्यता के निवासी पहले भवनों को प्लास्टर करने के लिए रंगीन मिट्टी को ज्यादा वरीयता देते थे लेकिन बाद में इसे अचानक से खत्म कर दिया।
यहां जल संरक्षण और नालियों की व्यवस्था उच्च कोटि की थी जो प्राचीन समय के कुशलता कारीगरी का एक उदाहरण है, यहां नगर की बाहर से किलेबंदी की गई थी और अंदर दो बड़े बड़े स्थल होते थे जिनमें एक का उपयोग त्योहारों के दौरान उत्सव मनाने के लिए, जबकि दूसरे का बाजार लगाने के लिए होता था। यूनेस्को धोलावीरा के अंत्येष्टि स्थल भी अपने में अलग विशेषता रखते हैं हालांकि यहां के अंत्येष्टि स्थलों से मानव कंकाल नहीं मिले हैं।

धोलावीरा का आयात-निर्यात:-

यहां के लोग मुख्य व्यापार में आयात-निर्यात करते थे व्यापारी मौजूदा राजस्थान, ओमान, यूएई आदि से तांबा अयस्क लाते थे और उनके उत्पाद बनाकर निर्यात करते थे।

धोलावीरा में सीपियों और अर्धकीमती पत्थरों के आभूषणों का कारोबार भी बड़े पैमाने पर होता था।

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धोलावीरा का पतन:-

इतिहासकारों के अनुसार धोलावीरा में जलवायु परिवर्तन और सरस्वती के साथ-साथ कुछ नदियों के सूखने की वजह से सूखा पड़ने लगा, इस प्रकार के गंभीर अकाल ने यहां के निवासियों को गंगा घाटी की तरफ पलायन करने पर मजबूर कर दिया जिससे कि वह दक्षिणी गुजरात और महाराष्ट्र की ओर पलायान कर गए।

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धोलावीरा के अतिरिक्त गुजरात के अन्य विश्व विरासत  स्थल:-

गुजरात में अब चार विश्व धरोहर स्थल हो गए हैं- धोलावीरा, पावागढ़ के पास चंपानेर, पाटन में रानी की वाव और ऐतिहासिक शहर अहमदाबाद। यूनेस्को की विश्व धरोहर समिति के 44वें सत्र के दौरान धोलावीरा और रामप्पा मंदिर को सूची में शामिल किया गया।

इस प्रकार प्रथम में इटली- 57, चीन-55, स्पेन-49 जर्मनी-46, फ्रांस-45 और भारत-40 विश्व विरासत स्थल के साथ छठवें स्थान पर है।

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