नताशा नरवाल ,देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा को जमानत मिली । हाई कोर्ट की सख्त टिप्पणी से क्या सरकार अब सबक लेगी।
यू ए पी ए का फुलफॉर्म Unlawful activities Prevention Act है। भारत की अखंडता और संप्रभुता की रक्षा तथा देशद्रोही गतिविधियों की रोकथाम के लिए भारतीय संसद ने 1967 में यूएपीए अधिनियम लागू किया। देश के राजनीतिक गलियारों में इस कानून को लेकर अक्सर विवाद सामने आते रहते हैं।
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नताशा नरवाल यूएपीए act का उद्देश्य आतंकी गतिविधियों को रोकना है । इस कानून की धारा 15 में भारत की एकता अखंडता सुरक्षा एवं संप्रभुता को संकट में डालने के इरादे से भारत में आतंक फैलाने की संभावना के इरादे से किया गया कार्य आतंकवादी कृत्य माना गया है बम धमाकों से लेकर जाली नोट बनाने को भी सम्मिलित किया गया है।
नताशा नरवाल इस कानून के दुरुपयोग को लेकर अक्सर आरोप लगते रहते हैं विशेषज्ञों का कहना है कि यह कानून सरकार द्वारा किसी भी व्यक्ति को आतंकवादी घोषित करने का अधिकार देता है। छत्तीसगढ़ में यूएपीए के मामले बढ़ते जा रहे हैं मिजोरम में अभी जो जर्नलिस्ट और एक्टिविस्ट हैं उन पर भी यूएपीए की धारा लगा दी जा रही है। गृह मंत्रालय ने कुछ आंकड़े दिए थे हाल ही में 2019 में यूएपीए के तहत कुल 11 26 मामले दर्ज किए गए हैं और 2015 में ही मामले 897 मामले दर्ज किए गए हैं इस प्रकार यूएपीए मामलों का एक उछाल देखने को मिल रहा है। इस कानून के तहत किसी भी व्यक्ति को बिना किसी न्यायिक प्रक्रिया के आतंकी घोषित करना एक बुराई है ऐसे तो किसी व्यक्ति, जो सरकार की नीतियों की आलोचना करता है, को आतंकी घोषित कर दिया जाएगा। छत्तीसगढ़ के लेमरू हाथी रिजर्व के लिए आदिवासी आंदोलन किया जा रहा है और बस्तर में भी आदिवासी आंदोलन हो रहा है । तो अल्पसंख्यकों आदिवासियों के विरुद्ध कानून का दुरुपयोग किया जाता है एक तरफ आदिवासियों और एक तरफ सरकार या बड़े कॉरपोरेट घराने तो बड़ा मुश्किल है एनआईए की जांच का निष्पक्ष होना। पुलिस राज्य सूची का विषय है एनआईए द्वारा किसी व्यक्ति को आतंकी घोषित किया जाता है तो एनआईए उसकी प्रॉपर्टी को जप्त कर लेती है इससे राज्य पुलिस का जो क्षेत्राधिकार है उसका अतिक्रमण किया जाता है।
यूएपीए की धारा देशद्रोहियों और आतंकवादियों को तो कम लेकिन उन लोगों को ज्यादा लगाई जा रही है या कहो वह सरकार द्वारा यूएपीए का शिकार हो रहे हैं जो सरकार की नीतियों के विरुद्ध हैं सरकार के खुले तौर पर आलोचक हैं। इन लोगों में स्टूडेंट्स , एक्टिविस्ट , पत्रकार , कार्टूनिस्ट और वह लोग जो सरकार की नीतियों का विरोध करते हैं, शामिल है।
नताशा नरवाल दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में नताशा नरवल देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा को जमानत दी है। और कोर्ट ने दिल्ली पुलिस और केंद्र सरकार को फटकार लगाई और कई दफ्त टिप्पणियां की। मानव अधिकारों के पक्ष में आवाज उठाने वाले स्टूडेंट हैं नताशा और देवांगना पिंजरा तोड़ संस्था से जुड़े थे जिनमे महिला सशक्तिकरण पर बल दिया जाता है। नताशा नरवाल , देवांगना कलिता और आसिफ इकबाल तन्हा को पिछले साल मई 2020 में पूर्वोत्तर दिल्ली में जो दंगे हुए थे , दंगा भड़काने के आरोप में अरेस्ट किया गया था। नताशा नरवाल लेकिन दिल्ली पुलिस ने कोई भी सबूत लोगों के खिलाफ नहीं जुटा पाए तो 1 साल के उपरांत इन्हें कोर्ट ने जमानत दे दी।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने जो हाल ही में फैसला किया है उसमें सर्वोच्च न्यायालय के कुछ मुख्य निर्णयों का हवाला दिया है-, Kartar Singh banam Punjab Raj 1994- इसके अंदर सुप्रीम कोर्ट ने एंटी टेरर लॉ है। नताशा नरवाल उनके गलत उपयोग को लेकर चिंता जाहिर की थी इसके अलावा जो दिल्ली हाईकोर्ट ने हितेंद्र विष्णु ठाकुर बनाम महाराष्ट्र राज्य मामला 1992 का हवाला दिया कि जो भी कानून बनाया गया है या हटाया गया है वह विधि के कानून के अनुरूप है तो कोर्ट को यह जरूरत नहीं है कि वह रिव्यू करती रहे और बताएं कि यह ठीक है या नहीं। नताशा नरवाल सन 2019 हाल ही एनआईए बनाम जहूर अहमद बटाली मामला मामला के अंतर्गत कहा गया कि अगर यूएपीए के तहत प्रथम दृष्टया के अंदर मामला दर्ज होता है और वह जमीनी स्तर पर सही पाती है उनको तो ही फिर बेल को डिनाई किया जा सकता है।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने कहा कि इन तीनों के खिलाफ प्रथम दृष्टया (Prima facie ) के अंदर मामला दर्ज ही नहीं किया गया था तो फिर उसे यूएपीए के अंदर कैसे मामला दर्ज हो जाएगा इसलिए दिल्ली उच्च न्यायालय ने इन तीनों को बेल दे दी है।
नताशा नरवाल दिल्ली उच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस की क्लास लगाई ,केंद्र सरकार को फटकार लगाई और देवांगना नताशा के खिलाफ प्रथम दृष्टया सबूत खारिज किए और फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कई अहम बातें कहीं-
” ऐसा लगता है कि असहमति की आवाज को दबाने की चिंता में सरकार की नजर में विरोध करने के संवैधानिक अधिकार और आतंकी गतिविधि के बीच का फर्क धुंधला होता जा रहा है अगर यह मानसिकता ऐसे ही बढ़ती रही तो यह लोकतंत्र के लिए काला दिन होगा और खतरनाक होगा”। यह बात जस्टिस सिद्धार्थ मृदुल और जस्टिस अनूप जयराम भवानी की पीठ ने कहा।
“ असंतोष दबाने की चिंता में और इस डर से कि मामला हाथ से निकल सकता है सरकार ने विरोध के अधिकार और आतंकवादी गतिविधि के बीच फर्क की रेखा को धुंधला कर दिया।” —HC
नताशा नरवाल दिल्ली हाईकोर्ट ने अपने फैसले में कई अहम टिप्पणियां की-” हमारे राष्ट्र की नींव मजबूत आधार पर है और कॉलेज के छात्रों और यूनिवर्सिटी के समन्वय कमेटी के सदस्यों द्वारा किए गए किसी भी प्रदर्शन चाहे वह कितना भी दोषपूर्ण क्यों ना हो उससे मिलने वाला नहीं है।”
नताशा नरवाल दिल्ली हाई कोर्ट ने यूएपीए कानून के बारे में कहा कि —” यूएपीए की धारा 15 में दी गई आतंकी कृत्य की परिभाषा काफी व्यापक और कुछ हद तक अस्पष्ट भी है। इसलिए इसे लापरवाही से इस्तेमाल करने से बचना होगा।”
नताशा नरवाल यह कानून देश की सुरक्षा के लिए बनाया गया है लेकिन जब देश के और लोकतंत्र की रक्षा के लिए उठने वाली आवाज को दबाने के लिए इसी कानून का उपयोग की जाए तो यह इस कानून का बहुत बड़ा दुरुपयोग है।