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खोरी गांव :UN खोरी गांव के लोगों के बेघर होने पर चिंता जताई और भारत सरकार से उनके आवास की अपील की।

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खोरी गांव की दशा

खोरी गांव के लोगों का सहारा कौन:-

इन दिनों खोरी गांव चर्चा में है खोरी गांव फरीदाबाद और दिल्ली की सीमा पर अरावली के जंगलों के बीच बीच बसा है। खोरी गांव में लगभग 10,000 मकान थे। लेकिन पर्यावरणविदों ने हो रहे लोगों द्वारा अतिक्रमण से चिंता जताई और कहा कि अरावली के जंगलों में आबादी के अतिक्रमण से खनन और आवास को गति मिल रही है इसके कारण पर्यावरण को नुकसान पहुंच रहा है। अतिक्रमण को हटाने के लिए पर्यावरणविदों ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया इस बात पर विचार करके सुप्रीम कोर्ट ने 7 जून को 10 हजार मकान ध्वस्त करने का फैसला किया। सुप्रीम कोर्ट ने चेतावनी दी कि 16 तारीख गुरुवार को वहां पर रहने वाले लोग वहां से हट जाएं लेकिन शुक्रवार 17 तारीख को सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर खोरी गांव के लोगों के घर पर बुलडोजर चला दिया गया। खोरी गांव के लोगों में अधिकतर लोग मजदूर वर्ग से आते हैं जिन्होंने भू माफियाओं के चक्कर में पड़कर जमीन खरीद ली और अब उन्हें अपने उसी घर को आंखों के सामने टूटते देखना पड़ रहा है।

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अरावली जंगलों के बीचोबीच बसने के पीछे भू माफिया, बिजली विभाग, प्रशासन और नेता भी हैं मजदूर सिर्फ एक कड़ी है :-

खोरी गांव एकदम से अचानक नहीं बसा है अरावली के जंगलों में लोगों के बसने का सिलसिला कई सालों से चला आ रहा है। यहां पर अधिकतर लोगों की जनसंख्या मजदूरी करने वालों की है। यह अवैध अतिक्रमण में सिर्फ वही लोग शामिल नहीं है जो वहां रहते हैं। यह बात भी बहुत दिलचस्प है क्योंकि इसमें भू माफियाओं ने जमीन को अवैध रूप से इन मजदूरों को बेचा इन लोगों के अतिक्रमण में सरकारी विभागों की भी सांठगांठ रही है। खोरी गांव अवैध अतिक्रमण से बसा है लेकिन यहां पर लोगों के पास आधार कार्ड पैन कार्ड , राशन कार्ड , वोटर आईडी कार्ड है । यहां के लोग बाकायदा वोट भी डालते हैं । सवाल यह उठता है कि जंगलों के बीच में पूरा का पूरा एक गांव बस जाता है और प्रत्येक विभागों को इसकी सूचना भी होती है लेकिन फिर भी कार्यवाही में इतनी देरी की गई। कार्रवाई में देरी से नुकसान यह हुआ कि और भी मजदूर फिर और भी मजदूर अतिक्रमण करते रहे और भू माफियाओं के तथा सरकारी विभाग में दोगले चरित्र वाले लोगों के झांसे में आते रहे। इस गांव में बिजली विभाग की भी सांठगांठ रही है क्योंकि इस गांव में जगह-जगह बांस के खम्भे गड़े हुए हैं जिसमें बाकायदा बिजली के तार लगे हुए हैं यहां के लोगों का कहना है कि भूमाफिया का एक ट्रांसफार्मर था फिर उसी में से पूरे गांव को कनेक्शन देता था प्रत्येक घर में एक छोटा मीटर लगा दिया था और प्रति महीने मजदूरों को बिजली के बिल के रूप में 600 से ₹700 देने पड़ते थे।

खोरी गांव के बसने में सरकारी विभागों एवं भू माफियाओं की थी सांठगांठ लेकिन नहीं हुई सरकारी विभागों पर कार्यवाही

UN ने खोरी गांव मामले में भारत सरकार से गुजारिश की :-

संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने बीते दिनों एक प्रेस विज्ञप्ति जारी की । इसमें भारतीय अधिकारियों से खोरी गांव के एक लाख लोगों को बेदखल करने से रोकने का आग्रह किया गया। संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने भारत से अपील की कि वह खोरी गांव के लोगों को हटाने की अपनी योजनाओं की तत्काल समीक्षा करें। इसके अलावा कोई भी नागरिक बेघर ना हो यह सुनिश्चित करने के लिए सेटलमेंट को निश्चित करने का विचार करें। जब लोगों के घरों पर बुलडोजर चल रहा था तो वहां के लोग विरोध प्रदर्शन करने लगे तो कथित तौर पर पुलिस कर्मियों ने सिविल ड्रेस में वहां के लोगों की बेरहमी से पिटाई की । यह वीडियो जब सोशल मीडिया पर वायरल हुआ तो UN की तरफ से खोरी गांव के लोगों पर दया जताई गई।

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UN ऑफिस के भारत के स्थाई मिशन ने, यूएन विशेषज्ञों की इस प्रेस रिलीज को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है। स्थाई मिशन ने UN विशेषज्ञों से किसी भी लोकतांत्रिक समाज में ‘ कानून के शासन ‘को बनाए रखने के महत्व को समझने की बात कही है।

खोरी गांव के लोगों के साथ न्याय :-

खोरी गांव के लोगों के लिए सरकार को आवास की व्यवस्था करनी चाहिए। वैसे तो हरियाणा सरकार को खोरी गांव के लोगों के लिए पहले ही आवास की व्यवस्था कर देनी चाहिए थी इसके बाद ही उनके आवास को मिटाना चाहिए था क्योंकि बिना आवास की व्यवस्था किए लोगों को बेघर कर देना ना तो नैतिकता के लिए सही है और ना ही इंसानियत के हिसाब से सही है।

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पर्यावरण बहुत ही संवेदनशील मुद्दा है लेकिन लोगों के अतिक्रमण को हटाने के लिए एक लोगों के आवास की व्यवस्था करनी चाहिए थी। क्योंकि पर्यावरण पर हानिकारक प्रभाव केवल और केवल खोरी गांव के बसने से नहीं होता। बक्सवाहा में कोयला निकालने के लिए करोड़ों पेड़ काटे जा रहे हैं लेकिन उन पर कोई कार्यवाही नहीं होती है ।यह भारत सरकार प्रशासन और पर्यावरणविदों का दोगला चरित्र है।

खोरी गांव में अभी केवल उन्हीं के घर मिटाए जा रहे हैं जो ईटों और छप्पर डालकर बनाए गए हैं। लेकिन वहीं पास में ही बनी लखपतियों की बिल्डिंग से किसी प्रकार का पर्यावरण को खतरा नहीं है केवल गरीब से ही या उनके सस्ते घरों से ही पर्यावरण को खतरा है। यह हमारे देश की सच्चाई और देश में रहने वाले दोगले लोगों का दोगलापन है। पर्यावरण एक बहुत ही संवेदनशील मुद्दा है इसको केवल गरीब ही नहीं सबके लिए सामान रखना है और सभी को पर्यावरण की चिंता करनी चाहिए। पर्यावरण के लिए केवल गरीबों के ही घर क्यों मिटाए जाए क्या अमीरों के घर से ऑक्सीजन निकलती है।

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