उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन ( North Atlantic Treaty Organization -NATO ) का गठन , उद्देश्य , कार्य तथा भारत को नाटो का सदस्य देश होना चाहिए या नहीं ?

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उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO)

उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन जब सोवियत संघ ने 1948 में बर्लिन की नाकेबंदी की तो पश्चिमी यूरोपीय पूंजीवादी देशों को साम्यबाद के प्रसार का डर लगने लगा। अतः पश्चिमी यूरोपीय देशों की सुरक्षा के लिए अमेरिका के नेतृत्व में नाटो नामक प्रतिरक्षा संगठन का निर्माण किया गया । फल स्वरूप इसके जवाब में सोवियत संघ ने वारसा पैक्ट किया । इस प्रकार सस्त्रीकरण को बढ़ावा मिला और अमेरिका और सोवियत संघ के बीच तनाव पैदा हो गया।

उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (North Atlantic treaty Organization -NATO) एक सैन्य गठबंधन है। नाटो की स्थापना 4 अप्रैल 1949 को हुई थी इसका मुख्यालय ब्रुसेल्स (बेल्जियम) में है। गठन की शुरुआत के कुछ वर्षों में यह संगठन इस राजनीतिक  संगठन से अधिक नहीं था।

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वर्ष 2017 एवं 2020 में क्रमशः मोंटेनेग्रो  और उत्तरी मेसिडोनिया को सदस्य देश के रूप में शामिल किया गया । नाटो ‘सामूहिक रक्षा के सिद्धांत’ पर काम करता है जिसका तात्पर्य एक या अधिक सदस्यों पर आक्रमण सभी सदस्य देशों पर आक्रमण माना जाता है । नाटो में कोई भी निर्णय सदस्य देश सामूहिक रूप से लेते हैं । उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन नाटो के सदस्य देशों का कुल सैन्य खर्च विश्व के सैन्य खर्च का 70% से अधिक है । जिसमें अमेरिका अकेले ही अन्य यूरोपीय देशों की तुलना में अधिक खर्च करता है।

नाटो  ( NATO ) का उद्देश्य :-

* नाटो की स्थापना का प्रमुख उद्देश्य पश्चिमी यूरोप में सोवियत संघ की साम्यवादी विचारधारा को रोकना था।

* नाटो का मुख्य उद्देश्य राजनैतिक तथा सैन्य तरीकों से अपने सदस्य राष्ट्रों को स्वतंत्रता और सुरक्षा देना है। उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन नाटो शांतिपूर्ण तरीके से विवादों को हल करने के लिए राजनीतिक प्रयास करता है यदि एक प्रयास विफल होते हैं तो उसे इस प्रकार के संकट प्रबंधन कार्यों को करने के लिए सैन्यशक्ति का भी प्रयोग करना पड़ता है।

* नाटो का उद्देश्य सदस्य देशों में एकता और सामंजस्य बनाए रखना है अपने सदस्य देशों के क्षेत्र की रक्षा करना जहां तक संभव हो सके संकट को कम करने की कोशिश करना ।

* आतंकवाद पर नियंत्रण लगाना और किसी भी रूप में आतंकवाद को स्वीकार ना करना समुद्र और समुद्रों से उत्पन्न संभावित खतरों से अपने सहयोगी देशों की रक्षा में सहायता करना ।

* संकट की स्थितियों का प्रबंधन करने के साथ-साथ सहकारी सुरक्षा को प्रोत्साहित करना भी नाटो का उद्देश्य है।

नाटो के सदस्य देशों के नाम

उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन नाटो ( NATO) के कार्य :-

* नाटो के मुख्य कार्य  क्रमशः सामूहिक सुरक्षा, संकट प्रबंधन और सहकारी सुरक्षा है जिसे वर्तमान रणनीतिक अवधारणा (2010) के अंतर्गत निर्धारित किया गया है।

* नाटो आतंकवाद से निपटने के साथ-साथ आतंकवादी हमलों के परिणाम का भी प्रबंधन करता है और प्रौद्योगिकी तकनीकी का विकास करता है ।

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* नाटो लोकतांत्रिक मूल्यों को बढ़ावा देता है और अपने सदस्य देशों की समस्याओं को हल करने का प्रयास करता है।

*  नाटो पहले शांतिपूर्ण राजनीतिक तरीके से समस्या को हल करने की कोशिश करता है यदि शांतिपूर्ण तरीके से समस्या हल नहीं होती है तो सैन्य शक्ति का सहारा लेना पड़ता है ।

उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन भारत के नाटो में शामिल होने पर तर्क :-

* नाटो सुरक्षा उद्देश्यों की उपलब्धि के साथ-साथ रणनीतिक स्थिरता और सामूहिक सुरक्षा के लिए भी एक आवश्यक योगदान देता है नाटो निशस्त्रीकरण, हथियारों के नियंत्रण और इसके अप्रसार के लिए वचनबद्ध है।

मानचित्र में नीले रंग से प्रदर्शित नाटो के सदस्य देश

– वर्तमान में भारत नाटो के सदस्य देशों में शामिल नहीं हैं लेकिन यदि भारत नाटो में शामिल होता है तो इसके पक्ष में क्या तर्क होंगे वह अग्रलिखित हैं-

– नाटो संधि के अनुच्छेद 5 में प्रावधान है कि नाटो के किसी भी सदस्य देश के खिलाफ हमले को गठबंधन के सभी सदस्यों के खिलाफ हमला माना जाएगा और नाटो द्वारा हमलावर के खिलाफ संयुक्त सैन्य कार्रवाई का आह्वान किया जाएगा । उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन यदि चीन और पाकिस्तान द्वारा भारत पर हमला किया जाएगा तो सभी नाटो सदस्य देश उन पर हमला करेंगे ।

– भारत नाटो वार्ता का सीधा मतलब एक सैन्य गठबंधन के साथ नियमित संपर्क स्थापित होना है, जिसके अधिकांश सदस्य भारत के सुव्यवस्थित भागीदार हैं। उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन इसके अलावा नाटो के कई सदस्यों के साथ भारत का सैन्य आदान-प्रदान के क्षेत्र में सहयोग है, जिसमें द्विपक्षीय और बहुपक्षीय प्रारूपों में अमेरिका बिट्रेन और फ्रांस शामिल है इसलिए भविष्य में दुनिया के सबसे शक्तिशाली संगठन के साथ सैन्य रणनीतिक गठबंधन से भारत लाभ प्राप्त करेगा।

– भारत चीन और विकासशील देशों के साथ मिलकर अमेरिका के खिलाफ विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ) से गठबंधन कर सकता है लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ एक “क्वाड” पर विचार करते हुए चीन का विरोध करता है। उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन साथ ही मित्र और इजरायल दोनों नाटो सहयोगी है जिनका  रूस के साथ रक्षा संबंध है ।स्वीटजरलैंड फिनलैंड स्वीडन और ऑस्ट्रिया सभी लंबे समय से चली आ रही तटस्थ परंपराओं के साथ नाटो सहयोगी सदस्य है ।

– भारत और नाटो के बीच स्थापित संबंध कई क्षेत्रों (आतंकवाद भू राजनीति सहित) में उत्पादों के विनिमय की सुविधा प्रदान कर सकते हैं जैसे सैन्य संघर्ष की उभरती प्रकृति ,बढ़ती सैन्य प्रौद्योगिकियों की भूमिका और नए सैन्य सिद्धांत।

ग्लोब में नीले रंग से प्रदर्शित नाटो के सदस्य देश

भारत के नाटो में शामिल ना होने पर तर्क :-

नाटो सदस्य सैन्य बोझ को साझा करने और एक स्वतंत्र सैन्य भूमिका के लिए नाटो और यूरोपीय संघ के बीच सही संतुलन बनाने के बारे में परस्पर विरोधी राय रखते हैं इसके अतिरिक्त नाटो सदस्य रूस मध्यपूर्व और चीन से संबंधित नीति पर भी असहमत है ।

भारत का नाटो का सदस्य बनने से भारत और रूस के मध्य लंबे समय से स्थापित मजबूत संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा । रूस ने अमेरिका के साथ भारत के बढ़ते सामरिक अभिसरण पर नाराजगी व्यक्त की है । उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन इसके अतिरिक्त है चीन और रूस के बीच स्थापित संबंधों को और अधिक मजबूती प्रदान हुई है।

भारत अभी भी रूसी सैन्य उपकरणों पर बहुत अधिक निर्भर है इसलिए नाटो में शामिल होने का विचार भारत के लिए सही नहीं होगा ।

भारतीय सीमा क्षेत्र में नाटो आधारित संगठनों की स्थापना एक अहम मुद्दा होगा । यह देश में व्यापक विरोध को बढ़ावा दे सकता है जिसको हमारी संप्रभुता का  उल्लंघन भी माना जा सकता है।

नाटो में शामिल होने का नकारात्मक पक्ष यह है कि भारत दुनिया भर के विभिन्न संघर्षों में भागीदार माना जाएगा। इसके फलस्वरूप विभिन्न संघर्षों में बहुत से भारतीय सैनिक मारे जाते हैं। उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन अतः भारत को नाटो में शामिल होने का कोई उचित कारण दिखाई नहीं देता है ।

विभिन्न पक्षों को देखते हुए नाटो देशों के साथ एक व्यावहारिक जुड़ाव भारत की विदेश नीति का महत्वपूर्ण हिस्सा होना चाहिए लेकिन भारत को नाटो का औपचारिक सदस्य बनने से बचना चाहिए।

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